गुरुवार, 15 जनवरी 2009

मानस की पीडा भाग 4.राम-लक्षमण सम्वाद

भाग 4.राम-लक्षमण सम्वाद

जय गणपति जय सूर्यदेव
जय विशणु ब्र्ह्मा औ महेष
कर रहे पूजा आज उर्मि-लखन
खुश था महल का हर एक जन
आज होगा राम का रज्याभिषेक
वर्षो से देखा था सपना एक
माता-पिता का अरमान था
जब उनका आँगन वीरान था
सोचते थे उनका भी होगा सुत
सूर्यवन्श का सूर्य देखेगा अवध
आज वो दिन तो आ ही गया
कौशल सुत बनेगा अब राजा
खुशी नही छुप रही थी छुपाने से
लख -उर्मि उत्सुक बताने मे
भूप राम सिया महारानी
अति सुन्दर जोडी जानी-मानी
राम के सिर राजा का ताज
देखने को है उत्सुक लखन आज
साथ मे सिया भी विराजेगी
उर्मि की बहन कैसी दिखेगी?
दोनो यूँ बाँट रहे खुशिया
रज्याभिषेक पे लगी अखियाँ
खुश हो रहे दोनो मन ही मन
कर रहे बात यूँ उर्मि लखन
तैयार हुए पहले सबसे
खिले हो कोई कमल जैसे
देखी ज्यो सूर्य की पहली किरण
राम के पास आया था लखन
भैया अब तुम होगे राजा
और मै हूँगा तेरी परजा
तुम मेरे भाई हो तब तक
नही बन जाते राजा जब तक
जी भर के देखूँ बडा भाई
बस यूँ ही मन मे आई
फिर तो तुम परजा को देखोगे
फिर मेरे भैया कहाँ रहोगे
ऐसे लखन यूँ ही बोलता जाता
मन की खुशी राम को जतलाता
पर यह क्या? तुम यूँ ही खडे हुए
अभी तक क्यो नही तैयार हुए
श्री राम जो सुख-दुख से है परे
सुन रहे लखन को खडे-खडे
नही दिखला रहे कोई खुशी औ गम
यह देख के रुके लखन के कदम
क्या बात है भैया बतलायो?
यूँ खडे हो क्यो? मुझे समझायो
देखती होगी तुमको परजा
बनना है अब तुमको राजा
फिर क्यो तेरी है यह हालत?
क्या मुझसे कुछ हुआ गलत?
भाबी तुम भी क्यो खडी मौन
क्या हुआ मुझे बतलायेगा कौन ?
किसी ने तुमसे कुछ गलत कहा?
लक्षमण का धैर्य तो जाता रहा
बिना सुने वह बोल रहा
श्री राम ने शान्त रहने को कहा
श्री राम थे बोले धैर्य से
बता रहे लक्षमण प्रिय से
पूरा करने को पिता का वचन
मै जाऊँगा सीता के सन्ग वन
अब राज्यभिषेक नही होगा
राजा प्रिय भाई भरत बनेगा
माँ केकैई ने यह लिया वचन
मुझे दिया है चौदह वर्ष का वन
सीता मेरी अर्धान्गिनी है
वह मेरी जीवन सन्गिनी है
मुझ बिन नही रहेगी वो महलो मे
मेरे सन्ग जायेगी जन्गलो मे
नही,नही अब नही यह हो सकता
हुआ है तुमको कोई धोखा
ऐसा नही कर सकती माता
तेरा भी तो सुत का है नाता
गर सच्च है , सुनो फिर मेरा कथन
मै देता हूँ तुमको वचन
तुमको नही वन जाने दूँगा
तेरे लिये पिता से भी लडूँगा
शान्त रहो तुम भैया लखन
अपना नही मैला करो तुम मन
यह तो है मेरा उत्तम भाग
मेरी किस्मत तो गई जाग
पिता के लिए मै वन जाऊँगा
उनका दिया वचन निभाऊँगा
पहला मौका है जीवन का
मेरा सपना ही था मन का
कभी पिता ने कुछ भी कहा नही
आवश्यक भी तो रहा नही
मै स्वयम को धन्य मानूँगा
जो पिता का प्रण पूरा करूँगा
रघुकुल रीति मे सुनो लखन
मर कर भी पूरा कर वचन
मै रघुकुल रीति निभाऊँगा
सिया के सन्ग वन को जाऊँगा
यूँ बीत जायेन्गे चौदह वर्ष
नही दुख कोइ , मन मे सच्च मे हर्ष
तुम यहाँ हर्षित रहना
माता-पिता की सेवा करना
नही नही भैया मै न रहूँगा
तुम बिन भला मै कैसे जिऊँगा
जिस भाई ने साथ दिया हर क्षण
वह जायेगा नही अकेला वन
मै भी अब साथ मे जाऊँगा
इक भाई का फर्ज़ निभाऊँगा
यह मेरा भी पहला अवसर
भाई सन्ग जाऊँगा वन की डगर
तुम भाबी का ध्यान रखना
मुझे एक दास ही समझ लेना
रो-रो कर कह रहा था लक्षमण
और पकड लिए थे राम-चरण
लक्षमण ने दे दी अपनी कसम
नही ले गए तो हो जाऊँगा खत्म
इस भाई से नही मिल पाओगे
फिर कैसा वचन निभाओगे ?
श्री राम के पास न शब्द रहे
उनके अश्रु भी बह गए
जिसका भाई इतना प्यारा
उसे क्या करना बन के राजा
वह बनेगे अब वन के राजा
और लक्ष्मण ही उसकी परजा
बनेगी सीता वन की रानी
और होगी यह अमर वाणी
लक्ष्मण भी वन मे जायेगा
और भाई का साथ निभाएगा
श्री राम ने भी अनुमति दे दी
और भाई की चाह पूरी कर दी

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