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फ़रवरी, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मानस की पीडा -भाग 7.भरत विलाप

मानस की पीडा भाग 7.भरत विलाप श्री राम जय राम जय जय राम मन मे केवल श्री राम का नाम अब था भरत नाना क घर पर हर क्षण बसा राम अन्दर शत्रुघन भी था भरत के साथ अब कर रहे थे आपस मे बात् जाने क्यो व्यकुल हो रहा मन वहाँ खुश हो भैया राम लखन आँखो मे आँसु भी आ रहे दोनो ही दुखित हुए जा रहे मन मे बेचैनी समा रही पर समझ नही कुछ आ रही समा रही मन मे भावुकता और घर जाने की उत्सुकता अब नही रहेन्गे नाना के यहाँ कल ही जाएँगे अयोध्या निकल पडे अगले ही दिन भारी प्ड रहा था हर पल छिन कुछ शकुन नही अच्छे हो रहे दोनो ही यह थे कह रहे किसी तरह से पहुँचे दोनो अवध मन मे विचारो का चल रहा युद्ध दोनो को अवध लगा सूना लगा जैसे नही यह देश अपना बस सन्नटा ही पसरा था नही रोशन कोई घर था न वहाँ पे थी कोई चहल-पहल यह देख के मन भी गया दहल रहे लोग भरत से मुँह फेर समझने मे न लगी कोई देर लोगो का उससे यूँ हटना हुई अवश्य कोई दुर्घटना पर क्या यह नही समझ पाए जलदी से राज महल आए जैसे ही उनके कदम पडे दशरथ ने अपने प्राण छोडे नही पिता से हो पाई थी बात दिल पर लगा था ऐसा आघात कुछ देर ही पहले पहुँच जाते तो पिता से बाते कर पाते जिस पिता ने चलना सिखलाय...

मानस की पीडा - भाग6.वन गमन

मानस की पीडा भाग6.वन गमन सिया राम के साथ लखन तैयार है अब जाने को वन होना था आज राज्याभिषेक खुश भी था अवधवासी हर एक पर हुई थी यह अनहोनी बात छा गई थी जैसे काली रात राजा नही बनेन्गे अब श्री राम और छोड जाएँगे अवध धाम हर अवधवासी था सोच रहा नही किसी को कोई होश रहा सबकी आँखे थी भरी हुई किसी अनहोनी से डरी हुई बस सन्नाटा था फैला हुआ नही कोई भी मुख था खिला हुआ सबके ही मन मे थी हलचल पर राम का वचन तो था अटल रोक रही जनता उनको हमे छोड नही जाओ वन को सारी जनता तेरी सेना चाहो जो तुम विरोध करना हम तेरे लिए मिट जाएँगे और तुमको ही राजा बनाएँगे नही , नही ऐसा नही सोचना कभी मुझको ऐसे नही रोकना कभी करता माँ का आज्ञा पालन धन्य है उस सुत का जीवन मेरा जीवन भी सफल तभी पूरा करूँगा मै वचन जभी नही लाना ऐसा विचार भारत का नही यह सभ्याचार माता-पिता तो सबसे बढकर वही तो दिखलाते है हमे डगर सब कुछ तो सिखलाती है माँ बनकर के बच्चो की छाया पिता ही तो चलना सिखलाता जब पहला कदम भी नही आता माँ ही तो है पहली ईष्वर उसके बिना तो जीवन नश्वर वह माता-पिता है पूजनीय हर पल है वे तो वँदनीय माता -पिता की उत्तम वाणी यह बात सदा जानी मानी उसे...