मानस की पीडा -भाग 7.भरत विलाप
मानस की पीडा भाग 7.भरत विलाप श्री राम जय राम जय जय राम मन मे केवल श्री राम का नाम अब था भरत नाना क घर पर हर क्षण बसा राम अन्दर शत्रुघन भी था भरत के साथ अब कर रहे थे आपस मे बात् जाने क्यो व्यकुल हो रहा मन वहाँ खुश हो भैया राम लखन आँखो मे आँसु भी आ रहे दोनो ही दुखित हुए जा रहे मन मे बेचैनी समा रही पर समझ नही कुछ आ रही समा रही मन मे भावुकता और घर जाने की उत्सुकता अब नही रहेन्गे नाना के यहाँ कल ही जाएँगे अयोध्या निकल पडे अगले ही दिन भारी प्ड रहा था हर पल छिन कुछ शकुन नही अच्छे हो रहे दोनो ही यह थे कह रहे किसी तरह से पहुँचे दोनो अवध मन मे विचारो का चल रहा युद्ध दोनो को अवध लगा सूना लगा जैसे नही यह देश अपना बस सन्नटा ही पसरा था नही रोशन कोई घर था न वहाँ पे थी कोई चहल-पहल यह देख के मन भी गया दहल रहे लोग भरत से मुँह फेर समझने मे न लगी कोई देर लोगो का उससे यूँ हटना हुई अवश्य कोई दुर्घटना पर क्या यह नही समझ पाए जलदी से राज महल आए जैसे ही उनके कदम पडे दशरथ ने अपने प्राण छोडे नही पिता से हो पाई थी बात दिल पर लगा था ऐसा आघात कुछ देर ही पहले पहुँच जाते तो पिता से बाते कर पाते जिस पिता ने चलना सिखलाय...