मानस की पीडा -भाग5.उर्मिला- लक्षमण सम्वाद
मानस की पीडा भाग5.उर्मिला- लक्षमण सम्वाद लक्ष्मण-उर्मिला सम्वाद मे वन गमन पूर्व का चित्रण किया है लक्ष्मण् - उर्मिला तब नव - विवाहित थे बहुत कठिन होता है किसी के लिये भी ऐसे हालात मे रहना , लेकिन उर्मिला और लखन रहे जिसके बारे मे हमने कभी सोचा ही नही कैसे रही होगी एक नव्-विवाहिता चौदह वर्ष तक पति से अलग इसके लिए "विरहिणी उर्मिला" एक भाग अलग से लिखा है ************************** भाग5.उर्मिला- लक्षमण सम्वाद हर्षित था अब लक्ष्मण का मन मिल गया था जैसे नव जीवन माँ का आशीष लेने को चला ऐसा भाई होगा किसका भला? माँ ने भी खुश हो कहा लखन श्री राम की सेवा मे जाओ वन नही तुम केवल बेटे ही लखन तुमसे है जुडा इक और जीवन पत्नी की अनुमति भी ले लो फिर जा के करम पूरा कर दो मुझे गर्व है तुम जैसे सुत पर हो जाएगा मेरा नाम अमर यह अति उत्तम, था माँ से कहा अब मुझे जाने की दो आज्ञा उर्मि है सर्व गुण सम्पन्न माँ नही टालेगी मेरा कहना जाओ तुम अब खुशी से रहना राम की दिल से सेवा करना मुझ पर नही आए कोइ उलाहना सीत का मानना हर कहना अब सीता को ही माँ समझो उस देवी की सेवा मे लगो देखो, कभी न उनको तन्ग करना उनका बेटा...