बुधवार, 7 जनवरी 2009

मानस की पीडा-द्वितीय भाग राम-स्तुति

मानस की पीडा के द्वितीय भाग राम-स्तुति मे तुलसी दास जी द्वारा पत्नी की धिक्कार खा कर घर त्याग कर श्री राम चरणो मे समर्पण कर देने पर प्रार्थना की गई है
इसके उपरान्त तुलसी दास पूरी तरह से राममय हुए और महान ग्रन्थों की रचना कर डाली
राम स्तुति

जय राम राम श्री राम
जग मे पावन इक तेरा नाम
इससे तो तर जाते प्रस्तर
तेरे नाम से हो जाते है अमर
हे जगत पिता हे रघुनन्दन
कातो अब मेरे भी बन्धन
रघुकुल के सूर्य राजा राम
लज्जित तुम्हे देख करोडो काम
कौशल नन्दन हे सीता पति
तेरे नाम मे है अद्भुत शक्ति
तू सुख सम्रिधि का दाता
तुम जगत पिता सिया जग माता
तुझ सन्ग शोभित है सिया लखन
अर्पण तुझ पर अब यह जीवन
इस जीवन का उद्धार करो
मुझे भव सागर से पार करो
साथ मे पवन पुत्र हनुमान
अनुपम झाङ्की को मन मे जान
हम करते है तेरा वन्दन
आकर दर्शन दो रघुनन्दन
हे सरल शान्त कौशल नन्दन
हम बाँस है और तू है चन्दन
हम पातक , तू पातक हर्ता
हे भाग्य विधाता सुख करता
इस जीवन का उधार करो
सब कष्ट हरो सब कष्ट हरो
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यूँ राम की करते हुए विनय
तुलसी तो हो ही गया राममय
नही सूझे कुछ श्री राम बिना
बिन राम के जीना भी क्या जीना

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1 टिप्पणी:

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

आपका ये कार्य बड़ा सराहनीय है...सीमा जी.........अपन भी प्रभावित हुए..........इससे........!!