मानस की पीडा- 1.तुलसीदास - वैराग्य की रात

प्रथम भाग "तुलसीदास वैराग्य की रात" मे तुलसीदास के जीवन
की उस रात को व्यक्त किया है जब वे पूर्ण रूप से श्री राम के
चरणो मे आए और रामचरित मानस ,विनय-पत्रिका, कवितावली,
दोहावली,जानकी मङ्गल्,पार्वती मङ्गल्......जैसे पावन ग्रन्थ रच डाले
जब जब श्री राम का नाम आयेगा, तुलसीदास का नाम साथ मे आयेगा
तुलसी को राम से अलग किया ही नही जा सकता


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1.तुलसीदास - वैराग्य की रात

श्री राम जय राम जय जय राम
हर पल है जुबा पर यही नाम
घन्घोर है तम तूफा गहरा
ऊपर से हो रही थी वर्षा
बादल गरजे बिजली चमके
पर उसके पैर अब कहाँ रुके
कहाँ कब और कैसे जायेगा
वह किसी को नही बतायेगा
पत्नी ने दी ऐसी धिक्कार
मिट गया था सारा अहँकार
अब आया था उसको ध्यान
जीवन उसका केवल श्री राम
पत्नी के मोह मे फँसा ऐसा
उसे स्मरण राम भी नही रहा
आज जब बोली थी रत्ना
जो राम से प्रेम करो इतना
तुम जग मे अमर हो जाओगे
भव-सागर भी तर जाओगे
झूठे मोह मे फँस कर तो तुम
अपना यह जीवन गँवाओगे
मुर्दे पे बैठ के आये हो
और साँप को रस्सी बनाए हो
चोरो की तरह घुस कर घर मे
तुम क्या परिचय करवाए हो
तुम्हे जरा शर्म भी नही आई
ऐसी भी क्या थी तन्हाई
यही प्रेम राम से किया होता
तो आज न तू तन्हा होता
उसे प्रेम करो जो विधाता है
जो इस जीवन का दाता है
जिस काम से तुमने लिया जन्म
अपना वह पूरा करो करम
उलटे पाँवो तुलसी था मुडा
और तभी श्री राम से नाता जुडा
जब पत्नी ने धिक्कार दिया
प्रभु राम ने आ के सँभाल लिया
जा रहा था अब वह उस पथ पर
बैठा था राम-नाम रथ पर
अब छोड चला था वह उसको
जीवन उसने समझा जिसको
मन अशान्त औ सोच गहरी
तुलसी की दृष्टि वही ठहरी
जहा वह श्री राम को पाएगा
जीवन को सफल बनाएगा
अब तक वह क्यो था रहा तम मे
यह सोच रहा मन ही मन मे
यह सोच - सोच चलता जाता
श्री राम प्रेम बढता जाता
तुम कहाँ हो अब हे रघुनन्दन
आ कर काटो मेरे बन्धन
मै दुर्जन , मूर्ख पातक
अपने ही लिये बन गया घातक
क्यो मै भूला तुमको रघुवर
क्यो छोड दिया मैने वो दर
है तू बसता जिसके अन्दर
क्यो छोडा मैने वो मन मन्दिर
क्यो इस मारग से भटक गया
और मोह माया मे अटक गया
क्यो तब नही सूझा था मुझको
जब छोड गया था मै तुझको
मै उस रघुवर को भूल गया
जिसने है हर पल साथ दिया
जिसके लिये छोड दिया तुझको
उसने ही ठुकराया मुझको
यह दुनिया सारी झूठ है
जहाँ हर पग-पग पर लूट है
नही कोइ किसी का हो सकता
जीवन भर साथ निभा सकता
मैने क्या ऐसा गलत किया
उसके लिये सबकुछ छोड दिया
हर स्वास पे नाम लिखा उसका
यह तुलसी हो गया था जिसका
मैने बस उससे प्रेम किया
अर्पण अपना नित्-नेम किया
जिसे प्रेम किया सबसे ज्यादा
और किया था जिससे यह वादा
वह साथ न उसका छोडेगा
सारे ही बन्धन तोडेगा
मैने झूठ नही कभी कोइ कहा
हर पल उसका हूँ हो के रहा
मैने वादा अपना निभाया था
और उसी को मन मे बसाया था
बन प्रेम पुजारी उसका मै
उससे ही मिलने आया था
क्यो प्रेम को उसने नही जाना
और मुझको ही मूर्ख माना
उसे जरा समझ मे नही आया
तुलसी वहाँ पर है क्यो आया
इक पल मे तोड दिया नाता
क्या ऐसे ही छोड दिया जाता?
बस इतना प्यार ही मुझसे था
जिसको मै कभी नही समझा
रत्ना ऐसा नही कर सकती
मेरा साथ कभी नही तज सकती
हर पल मेरे साथ बिताती थी
अपना हर फर्ज़ निभाती थी
पर आज छोड गई मेरा साथ
बाहर कितनी काली है रात
सोचा नही कैसे मै आया हूँ
आ कर उसको बतलाया हूँ
कितनी देखी मैने मुश्किल
तब जा कर कही हुआ सफल
क्यो चली आई मुझसे बिना कहे
तुलसी तुम बिन अब कैसे रहे?
पर रत्ना ने कहाँ सुना
बिन समझे ही धिक्कार दिया
सोचते तुलसी यूँ गिर ही पडे
बहने लग आँसु बडे-बडे
पीडा थी अब अन्दर- बाहर
न सूझ रही थी कोई डगर
सुनसान मे जाकर बैठ गया
रो-रो कर वही पे लेट गया
बाहर वर्षा तूफा अन्दर
पत्नी का प्रेम लगा खण्डहर
वह टूट के उस पर गिर गया था
उसमे तुलसी भी दब गया था
उस खण्डहर से निकले कैसे
शुध हो जाये उसका मन जैसे
बैठा तुलसी बस रो ही रहा
मुख को आँसुओ से धो ही रहा
रोते हुए भाव बहा रहा था
अब स्वयम को ही समझा रहा था
बह गई नफरत अश्रु बन कर
बन गया था कुन्दन वह जल कर
नही बुरा भाव कोई मन मे रहा
खुश हो कर तुलसी बोला ! अहा
श्री राम ने यह अच्छा ही किया
मेरे दोषो का दण्ड दिया
क्यो दोष मै रत्ना को दे रहा?
क्यो मैने उसको बुरा कहा?
वह तो देवी सबसे पावन
जिसने शुध किया है मेरा मन
प्रेम तो बस उसका सच्चा
मै ही हूँ अक्ल मे बस कच्चा
उसने ही तो समझाया है
श्री राम का मार्ग बताया है
धन्य है वह देवी रत्ना
जो आज न होती यह घटना
कैसे मै उसको छोड देता
श्री राम से नाता जोड लेता
मेरे लिये तो सम्भव नही था
मै तो भँवर मे घिरा ही था
रत्ना ने ही तो निकाला है
डूबते तुलसी को सँभाला है
मुझे क्षमा कर देना हे रघुवर
दुर्भाव आये मेरे अन्दर
उस देवी को भी बुरा कहा
जिसने मुझे मार्ग दिखा दिया
अब नही तुलसी रुक पायेगा
श्री राम शरण मे जायेगा
उसको पाना है जीवन मे
नही कोइ पछतावा अब मन मे
जो हुआ , अच्छा ही हुआ
तुलसी तो अब श्री राम का हुआ
उसकी मन्जिल श्री राम चरण
अब उन्ही चरणो मे होगा मरण
रच डाला रामचरित मानस
श्री राम की हो गई कथा अमर
लिखते कभी पत्रिका मे विनय
सबके लिये राम हो मन्गलमय
बरवै रामायण लिख दी
फिर विनय मे लिख दी दोहावली
मन मे शान्ति फिर भी नही
अर्पण की राम को कवितावली
खुश हो जानकी मन्गल लिखते
सिया-राम भक्ति मे रत रहते
पर नही भरा तुलसी का मन
लिख दी वैराग्य सन्दीपन
हर एक शब्द मे भरा भाव
पर नही भरा ह्रदय का घाव
वह घाव तो बढता ही जाता
तुलसी उसमे घुलता जाता
तुलसी लिखता जाता जितना
गहरा होता वह घाव उतना
भाव का उमडता वह तूफान
जिससे तुलसी भी था अनजान
राम नाम ऐसा सागर
पैठा उसमे जो कोइ अगर
नही फिर वह बाहर आ सकता
उस अनुभव को न बता सकता
दिल पर थे उसके ऐसे जख्म
बस राम नाम उसका मरहम
बिन सोचे ही लिखता जाता
क्या चाहता है उससे विधाता
क्या लिख दी उसने कथा अमर
उस कथा से शोभित हर मन्दिर्
यह तुलसी की है अमर वाणी
श्री राम कथा जानी-मानी
श्री राम का नाम जब आयेगा
तुलसी का नाम भी आयेगा
भिन्न नही हो सकते यह नाम
राम तुलसी और तुलसी राम
जितना लिखता लगता वह कम
सोच के आँखे होती नम
श्री राम के दर्शन की इच्छा
यही तो तुलसी का प्रेम सच्चा
करता हर पल श्री राम जाप
धुल जाते जिससे सारे पाप
मन मे सिया- राम की ही भक्ति
इस नाम मे है अद्भुत शक्ति
इससे भी मन जो नही भरता
श्री राम का बस वन्दन करता
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टिप्पणियाँ

simji
RAMCHARITRA KE KUCH CHUNINDA ADHYAY KAA BHI PRAKSHAN KARE.,,,,,
AAPA DHARM KE SHETRA MEIN LOGO KO KUCH DESAKTE.
MAHAVEER B SEMLANI "BHARTI'"
Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…
वाह्! अति उत्तम......
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है.
खूब लिखें,अच्छा लिखें......
Rahul kundra ने कहा…
हिन्दी ब्लोग्स की दुनिया में स्वागत है दोस्त
बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
राम खेलावन ने कहा…
नमस्कार आप सही लिखे है हमारे ब्लोग पर सादर आमन्त्रित है.
Publisher ने कहा…
ब्लाग जगत में सुंदर लेखन के साथ आपका स्वागत है। जिंदगी के किसी मोड़ पर कोई सच्चा साथी मिले, तो खुशी होती है। आपको भी इस विशाल सागर में आपकी भावनाओं को समझने वाले मित्र मिलेंगे। शुभकामनाएं।
बेनामी ने कहा…
gyan badhane k liye dhanyabad

---------------------------"VISHAL"
राम और तुलसी से जुडा एक और ब्लाग देख कर प्रसन्नता हुई। हमारा ब्लाग है : sandarshan.blogspot.com
बेनामी ने कहा…
रसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति
कर्ण बोहरा (नेपाल) ने कहा…
जय माता बाबा

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