मानस की पीडा - भाग6.वन गमन

मानस की पीडा

भाग6.वन गमन

सिया राम के साथ लखन
तैयार है अब जाने को वन
होना था आज राज्याभिषेक
खुश भी था अवधवासी हर एक
पर हुई थी यह अनहोनी बात
छा गई थी जैसे काली रात
राजा नही बनेन्गे अब श्री राम
और छोड जाएँगे अवध धाम
हर अवधवासी था सोच रहा
नही किसी को कोई होश रहा
सबकी आँखे थी भरी हुई
किसी अनहोनी से डरी हुई
बस सन्नाटा था फैला हुआ
नही कोई भी मुख था खिला हुआ
सबके ही मन मे थी हलचल
पर राम का वचन तो था अटल
रोक रही जनता उनको
हमे छोड नही जाओ वन को
सारी जनता तेरी सेना
चाहो जो तुम विरोध करना
हम तेरे लिए मिट जाएँगे
और तुमको ही राजा बनाएँगे
नही , नही ऐसा नही सोचना कभी
मुझको ऐसे नही रोकना कभी
करता माँ का आज्ञा पालन
धन्य है उस सुत का जीवन
मेरा जीवन भी सफल तभी
पूरा करूँगा मै वचन जभी
नही लाना ऐसा विचार
भारत का नही यह सभ्याचार
माता-पिता तो सबसे बढकर
वही तो दिखलाते है हमे डगर
सब कुछ तो सिखलाती है माँ
बनकर के बच्चो की छाया
पिता ही तो चलना सिखलाता
जब पहला कदम भी नही आता
माँ ही तो है पहली ईष्वर
उसके बिना तो जीवन नश्वर
वह माता-पिता है पूजनीय
हर पल है वे तो वँदनीय
माता -पिता की उत्तम वाणी
यह बात सदा जानी मानी
उसे बिना विचारे मान ही लो
शुभ होगा सदा यह जान ही लो
चुप हो गए सारे अवध के जन
पर राम जाएँ , नही मानता मन
अति उत्तम ! हम जाएँगे साथ
हम भी भोगेगे यह वनवास
हम भी अब वन मे जाएँगे
वही पर हम अवध बनाएँगे
तुम ही होगे वन के राजा
और हम होन्गे तेरी परजा
तुमको न अकेला छोडेगे
बेशक हम भूखे रह लेन्गे
पहनेगे हम वल्कल तन पे
नही करेन्गे कोई इच्छा मन मे
हम पर भी तो करो विश्वास
नाखुन से अलग न होगा माँस
मछली न रहे ज्यो बिना नीर
वैसे ही तुम सबकी तकदीर
तुम बसते हो हर धडकन मे
तुमको ही पाना जीवन मे
बस यही इक इच्छा है मन मे
और तुम्ही चले हो अब वन मे
हमको अब तुम रोकना नही
साथ जाने से भी टोकना नही
हम नही रहेन्गे अवध तुम बिन
सूना ही लगेगा यह हर छिन
खडे मार्ग मे जैसे पत्थर
श्री राम के पास नही उत्तर
सीता सन्ग श्री राम लखन
रथ पर जा रहे थे वन
था जैसे ही रथ बढा आगे
सारे ही जन पीछे भागे
आँखो मे बस अश्रु बहते
और मुख से राम राम कहते
जा रहे थे वे पीछे रथ के
जाते नन्दन जहा दशरथ के
जा पहुँचे थे इक वन मे
श्री राम ने सोचा अब मन मे
यह नही उत्तम वे साथ चले
अपना वह घर वीरान करे
जहा बूढी माँ बच्चे छोटे
यही उचित है वे घर को लौटे
श्री राम ने माया फैलाई
सबको ही नीद गहरी आई
वे छोड चले उन्हे सोते हुए
सारथी जा रहा था रोते हुए
दूर वनो को चले गए
और सारथी से शब्द कहे
जाकर सबको समझा देना
और यह भी तुम बतला देना
वनवास काट हम आएँगे
तब सबसे हम मिल पाएँगे
कोई भी पीछे नही आए
उत्तम यही वे घर को जाएँ
सीता सहित श्री राम लखन
पहुँच गए थे सघन वन
वहाँ चौदह वर्ष बिताएँगे
तब ही घर वापिस आएँगे

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टिप्पणियाँ

K.P.Chauhan ने कहा…
aapne raamaayan ke patron ke snvaad ko khando me vibhajit badi hi sundartaa se kiyaa hai wah vastave me srahniy hai uski jitni bhi taarif ki jaaye utni hi kam hai
krpyaa mere blog ko bhi dekhen

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